बढेडी राजपूतान में 21 रमजान को हजरत अली की शहादत को किया गया याद…..

बुरहान राजपूत
देशभर में लॉक डाउन चल रहा है। तो वहीं दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय के लोगों का पवित्र महीना रमजान उल मुबारक भी चल रहा है। रमजानुल मुबारक का 21 वां रोजा है और 21 रमजान सन 40 हिजरी को ही हजरत अली अ. की शहादत इराक के शहर कूफा में हुई थी। उन्हें अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम ने सुबह की नमाज में तब शहीद किया। जब मौला नमाज की पहली रकअत का सजदा कर रहे थे। हजरत अली की शहादत के 1401 साल पूरे हो गए। सैय्यद वाशिफ हुसैन साबरी ने बताया कि हमारे गांव में मौला अली शेरे खुदा की फातिया लगाई जाती है। क्योंकि मौला अली पैगम्बर मुहम्मद साहब के दामाद थे। और हजरत फातिमा पैगम्बर साहब की बेटी थी। जिनका निकाह मौला अली शेरे खुदा से हुआ था। जब पैगम्बर साहब के पास किसी तरह का कोई मामला आ जाता था। तो मौला अली को बुलाया जाता था। मौला अली शेरे खुदा उस मामले को बड़ी सरलता पूर्वक व सहजता के साथ उस मामले को हल कर दिया करते थे।
उन्होंने बताया कि हजरत अली अ. से किसी ने सवाल किया कि इल्म अफजल है कि दौलत। इमाम ने बताया इल्म अफजल है। इसके लिए जितनी बार ये सवाल किया गया मौला अली ने हर बार अलग-अलग दलील दी। इल्म इसलिए अफजल है क्योंकि दौलत से इंसान हुकूमत हासिल कर सकता है लेकिन, उसे चला नही सकता। हुकूमत चलाने के लिए इंसान को इल्म की जरूरत होगी।
हजरत अली के बारे में पैगंबर-ए-अकरम स. की कई हदीसें हैं। मौला अली ने अपनी चार साल की हुकूमत में गरीबों को उनका हक दिया। मौला रोज रात को अनाज और खाना अपनी पीठ पर लाद कर गरीबों के घर तक ले जाते थे। सरकारी रकम का बंटवारा इंसाफ के साथ करते थे।
सैय्यद वाशिफ हुसैन ने मौला अली के वाक्यो पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हजरत अब्दुला इब्ने अब्बास रह॰ फरमाते हैं कि जब कोई अहम मस्ला मौला अली शेरे खुदा से पूछा जाता तो वे बहुत बेहतर जवाब दिया करते थे। मौला अली शेरे खुदा फरमाते हैं कि कुरान की हर आयत के मुतालिक जानता हूं कि ये किसके बारे में और कहा नाजिल हुई है। हर आयत के मुतालिक जानता हूं कि ये रात में नाजिल हुई या दिन में हजरत मौला अली फरमाते हैं। कि सुहरे फातिहा की तफ्सीर (खुलासा) लिखे तो इस तफ्सीर का (खुलासा) की किताबें 70 ऊंटों पर लादी जायेंगी। तब एक सुहरे फातिहा का खुलासा किया जा सकता है।